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Monday, May 18, 2015

19 may

एक और जहाँ बसता है 
इन आँखों के पीछे
जैसे खामोशिया कई दबी है
सलाखों के पीछे
बेख्याली में वो अक्सर सताता है
नींद नहीं आती फिर उन्हीं
झूठी बातों के पीछे
सुना है शेहेर के आईने में
मुझे तलाशता है,छुपा है कहीं भीड़ में
इन लाखों के पीछे
















































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