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Tuesday, June 2, 2015

RAVIESKUMAR

स्कार मैं रवीश कुमार, मोदी सरकार के एक साल होने पर अर्थव्यवस्था पर छपे पचास से ज़्यादा लेखों, संपादकीयों और बयानों को ध्यान से पढ़ा। भांति-भांति के अर्थशास्त्री, बिजनेसमैन, शोध संस्थाओं के ज्ञानी और पत्रकारों के लेख पढ़ते हुए ऐसा लगा कि मैं दावेदारी के एक विशाल दरिया में फेंक दिया गया हूं। जहां एक लेख में मैं जीडीपी ग्रोथ के साथ ऊपर आ जाता था तो दूसरे लेख में उपभोक्ता मांग में कमी के भार से नीचे आ जाता था। न तो तेरा जा रहा था, न डूबा जा रहा था। हांफ गया, लेकिन पता नहीं चला कि समस्या या संभावना की गहराई कितनी है। लेकिन एक समस्या का समाधान हो गया। वो यह कि मैं कंफ्यूज़ नहीं हूं, ये लेखक ही कंफ्यूज़न में हैं। एक आदमी और है। जो न तो भ्रमित है न उत्साहित। जिद्दी मालूम पड़ता है और किसी से नहीं दबने वाला।

हम एंकरों की तरह हम मौसम में कोट पहनने वाले इस शख्स की एक ख़ूबी बहुत पसंद आई। वो यह कि आप मेरी तरह नेताओं के बयान सुनकर अख़बारों के आर्टिकल पढ़कर अर्थव्यवस्था को समझने का प्रयास नहीं करते। यह शख्स तमाम दावों और आशंकाओं के बीच अपनी राय पर टिका हुआ है। आप हैं भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर रघुराम राजन। आई आई टी दिल्ली, आई आई एम अहमदाबाद, एम आई टी अमरीका से पढ़ने के बाद आई एम एफ यानी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुख्य अर्थशास्त्री रह चुके हैं। हमारी राजनीतिक शब्दावली में गर्वनर शब्द आते ही कैसे कैसे गर्वनर याद आने लगते हैं, लेकिन भारत के वित्तीय संसार के मुखिया के तौर पर राजन साहब की बात ही कुछ और है। 20 मई को न्यूयार्क में कहते हैं कि ये सरकार बहुत ज़्यादा उम्मीदों पर सवार हो कर आई है। किसी भी सरकार के लिए इस तरह की उम्मीदें व्यावहारिक नहीं होती हैं। उन्होंने एक और नई उपमा दी जिसकी ध्वनि लोकसभा चुनावों में तो सुनाई नहीं दी। न्यूयार्क के इकोनोमिक क्लब में कहा कि लोगों के दिमाग़ में नरेंद्र मोदी सफ़ेद घोड़े पर सवार रोनल्ड रेगन हैं जो बाज़ार विरोधी शक्तियों को नेस्तानाबूद कर देंगे। इस तरह की तुलना ठीक नही है। मुंबई में आज उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक चीयरलीडर नहीं है। यह एक सामान्य स्टेंटमेंट नहीं है। अर्थव्यवस्था के गुलाबी बाग़ में जयकार करने वाले तमाम लोगों को वे इस एक वाक्ये से झिड़क देते हैं। रघुराम राजन रिजर्व बैंक की स्वायत्तता को लेकर सजग भी हैं और सक्रिय भी।

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