26 मई को विपक्ष के भी एक साल पूरे हो रहे हैं। सरकार के साथ-साथ विपक्ष का भी मूल्यांकन किया जाना चाहिए। पूरे साल के दौरान विपक्ष की क्या भूमिका रही है और मोदी सरकार के एक साल पूरे होने के संदर्भ में उसकी क्या कार्य योजना है। क्या विपक्ष ने इस मौके पर सतही नारेबाज़ी के अलावा कोई ठोस आलोचना पेश की है। विपक्ष ने सरकार के दावों को नकारने का काम तो किया है लेकिन क्या उसकी तरफ से ऐसे विकल्प पेश किये गए हैं, ऐसे तर्क गढ़े गए हैं जिससे जनता के मन में सरकार की नीयत के प्रति गहरा संदेह पैदा हो। सिर्फ चंद मौकों पर सरकार की चूक का लाभ उठाकर विरोध करना ही विपक्ष का काम नहीं है। मैं विपक्ष का मूल्यांकन इस बात पर भी नहीं करना चाहता कि कितनी नीतियों में सरकार का साथ देकर सकारात्मक भूमिका निभाई बल्कि इस बात को लेकर करना चाहता हूं कि सरकार की बड़ी योजनाओं को वैचारिक स्तर पर क्या ठोस चुनौती दी गई।
हो सकता है विपक्ष ने चुनौती दी भी हो लेकिन वो चुनौती बड़े स्तर पर दर्ज हो इसका प्रयास तो कम ही दिखता है। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह अपने बेटे की शादी की तैयारियां छोड़कर प्रेस कांफ्रेंस कर मोदी सरकार पर सवाल तो खड़े करते हैं, कांग्रेस की तरफ़ से एक दो प्रेस कांफ्रेंस भी होती है लेकिन इससे ज़्यादा कुछ नहीं होता है। बाकी दलों की सक्रियता भी प्रेस कांफ्रेंस से ज़्यादा की नहीं है। जैसे सरकार का काम दावा करना रह गया है वैसे ही विपक्ष का काम खारिज करना हो गया है।
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