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Sunday, May 31, 2015

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ट्विटर पर दलित संगठनों की धमक, पर चमक क्यों है फीकी
Ravish Kumar
Updated: May 30, 2015 11:24 IST
ट्विटर पर दलित संगठनों की धमक, पर चमक क्यों है फीकी
नई दिल्ली: @dalitdiva मैंने तो ऐसा हैंडल नहीं देखा। ट्विटर न कहीं और भी। अंग्रेज़ी शब्द है दिवा, जिसका इस्तेमाल सिनेमा और मॉडलिंग जगत की परियों जैसी बालाओं के लिए किया जाता है। थेनमाझा सौंदराराजन की ख़ूबसूरती उनके ट्विटर हैंडल से और भी बढ़ जाती है। इस नाम में एक किस्म की बग़ावत तो है ही। बाज़ार और जाति के बनाए सौंदर्य रूपों का विद्रोह है ये नाम। मेरी दिलचस्पी सौंदराराजान के पीछे-पीछे ले गई। मैं गूगल में उनके निशान ढूंढने लगा। पता चला कि सौंदराराजान दलित, रंगभेद और नस्ली हिंसा के ख़िलाफ़ अनेक माध्यमों में लिखती हैं और मानती हैं कि इन कहानियों को सामने लाने से दुनिया बदलती है। सौंदरा http://dalitnation.com के लिए काम करती हैं। खुलकर लिखती हैं और सीधे सवाल करती हैं। आंखों में आंखें डालकर।

आप पाठकों को मैं आज ट्विटर की दुनिया में दस्तक दे रही दलित आवाज़ों की दुनिया में ले चलता हूं। फोलोअर के हिसाब से ये दुनिया फ़िलहाल छोटी मालूम पड़ती है और मेरी उस बात की तस्दीक करती है कि ट्विटर पर दलित मसलों पर समर्थन क्यों नहीं मिलता है। एनडीटीवी के ब्लॉग पर ही लिखा था कि ऐसा क्यों होता है कि धार्मिक और जातिगत पहचान लेकर सवर्णों की कई जातियां खुलेआम ट्वीट करती हैं, लेकिन उनके मुकाबले दूसरी पिछड़ी और दलित जातियां कमज़ोर पड़ जाती हैं। धार्मिक और जातिगत पहचान वाले सवर्णों के प्रोफाइल में जाएंगे तो पता चलेगा कि ये बेहद चालाकी से राष्ट्रवाद और किसी संगठन का झंडा लहराकर अपने जातिगत स्वाभिमान को राष्ट्रीय रूप दे देते हैं। कई बार सोचता रहा देश की आबादी का एक बड़ा प्रतिशत है दलितों का। दलितों के बीच पनपा मध्यमवर्ग क्या अपनी पहचान को लेकर आशंकित है या वो वाकई किसी गैर जातीय ईकाई में बदल चुका है। बदल भी गया है तो कम से कम वो जाति आधारित शोषण के ख़िलाफ़ टिप्पणी तो कर ही सकता है।

लेकिन शुक्रवार को जब आईआईटी मद्रास में अंबेडकर पेरियार स्टुडेंट सर्किल की मान्यता रद्द करने का विवाद हुआ तो ट्विटर पर इस ग्रुप का एक हैंडल देख मैं खुद भी चौंका। किसी को देश में फैलते जातिवाद को लेकर चिन्ता है तो इनकी टाइमलाइन पर जाकर देखना चाहिए कि किस तरह से इनके बारे में ज़हर उगला गया है। हमारे देश में कई अच्छे लोग बिना जातिवाद को चुनौती दिए, उस धर्म को चुनौती दिये जिसकी बुनियाद पर ये जातिवाद खड़ा है, जातपात से दूरी बनाने की नादानी पाल लेते हैं। उनकी इस खुशफ़हमी का स्वागत है लेकिन यह समझना चाहिए कि बिना बुनियाद पर चोट किये आप इस ज़हर का निदान नहीं पा सकते हैं।

@ambedkarperiyar को पांच सौ से ज्यादा लोग फोलो करते हैं। इनके 370 से कुछ अधिक ट्वीट्स हैं। कई लोगों ने इनके सर्किल को प्रतिबंधित किये जाने का समर्थन भी किया है लेकिन जो जातिगत हमला किया गया है वो मुझे तो हैरान नहीं करता। इस समूह की एक खास बात यह है कि इन्होंने हर तरह की गालियों जैसी दलील का जवाब दिया है। पलट कर सवाल पूछे हैं। वंदेमातरम आईआईटी मद्रास के फेसबुक पेज का लिंक ट्वीट करते हुए चुनौती दी है कि अगर हम अपने सर्किल में आईआईटी का नाम नहीं लगा सकते तो दक्षिणपंथी संगठनों को क्यों छूट मिली है। वंदेमातरम आईआईटी मद्रास के फेसबुक पेज को 410 लाइक्स मिले हैं और एस गुरुमूर्ति और सुब्रमण्यम स्वामी के लेक्चर का वीडियो पोस्ट किया गया है। अंबेडकर पेरियार के ट्वीट ने कहा है कि हमने आईआईटी मद्रास में ब्राह्मणवादी प्रवृत्तियों का पर्दाफाश कर दिया है। एक दूसरे ट्वीट में कहा है कि हमें ईरानी और गांधी का समर्थन नहीं चाहिए। हम बीजेपी-कांग्रेस दोनों का ही विरोध करते हैं।

दलित मुद्दों को लेकर बने इन ट्विटर हैंडल पर अखबारों में छपी उन ख़बरों को साझा किया जा रहा है जिन पर मुख्यधारा की मीडिया में कोई चर्चा नहीं होती, लेकिन हैरानी की बात है कि ट्विटर की दुनिया का बर्ताव मुख्यधारा की मीडिया से अलग नहीं है। वहां भी ऐसे मसलों को कम री-ट्वीट मिलते हैं। ऐसा लगता है कि सब सहमत हों कि अच्छा ही हुआ कि राजस्थान में तीन दलितों को ट्रैक्टर से कुचल दिया गया। अच्छा ही हुआ कि मध्यप्रदेश में दलित परिवारों को कुएं से पानी नहीं लेने दिया गया। दलित दिवा ने महाराष्ट्र में अंबेडकर के उस गाने को साझा किया है जिसका रिंगटोन बजने पर दलित युवक की हत्या कर दी गई।
ये सभी ट्विटर हैंडल एक दूसरे को फोलो करते हैं। संख्या के हिसाब से दो हज़ार लोग भी फोलो नहीं करते हैं, लेकिन मुद्दे यहां बिना किसी लाग लपेट के उठाए गए हैं। मैंने आठ-दस ट्विटर हैंडल ही देखे हैं और इनमें से ज्यादातर 2009 से लेकर 2012 के बीच के बने हुए हैं। ट्विटर पर आम तौर पर बड़े समाचार माध्यमों और फिल्मी और मीडिया के लोगों को ही ज़्यादा फोलो किया जाता है।

@Community Media नाम से बने हैंडल ने अपील की है कि वे अंबेडकर पेरियार स्टुडेंट सर्किल के हैंडल को फोलो करें और उनका समर्थन करें। अंबेडकर कारवां के हैंडल पर डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के विचारों और कथनों को साझा किया जाता है। @Community Media को 1849 लोग फोलो करते हैं और इसके 8000 से ज़्यादा ट्वीट हैं। यहां तक कि ज़माने से पायनियर में दलित डायरी लिखने वाले चंद्रभान प्रसाद के ट्विटर हैंडल को भी 2000 से ज़्यादा लोग फोलो नहीं करते हैं। जबकि चंद्रभान अंग्रेज़ी से लेकर हिन्दी के तमाम चैनलों पर बतौर विशेषज्ञ आते रहते हैं। वे एक जाना माना नाम हैं लेकिन लगता है कि उनमें ट्विटर जगत के ग़ैर जातीय महानगरीय राष्ट्रवादी लोगों की कम ही दिलचस्पी है। चंद्रभान ने आईआईटी मद्रास के छात्रों का समर्थन किया है।

Saturday, May 30, 2015

Take a look at @punjabkesari's Tweet: https://twitter.com/punjabkesari/status/604861833581891584?s=09

30 may

राहुल गांधी में ये बदलाव कैसे?

अगर आप को कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मिलने का मौक़ा मिले तो उनसे आप पहला सवाल क्या करेंगे? यही सवाल मैंने अपने कुछ युवा साथियों से फ़ोन करके पूछा.

एक ने कहा वो उनसे पूछेंगे कि आप 56 दिनों तक कहां ग़ायब थे और उस दौरान आपने क्या खाया कि अब आप आक्रमणकारी बन गए हैं?

दूसरे ने कहा कि उनका सवाल होगा, "आप के अचानक आक्रामक होने का राज़ क्या है?".

तीसरे ने कहा कि उनका प्रश्न होगा, "आप अब अचानक इस क़दर मोदी सरकार और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर क्यों बरस रहे हैं?"

तीनों उत्तर में एक बात सामान्य थी और वो थी राहुल गांधी का आक्रामक रुख़, ख़ास तौर से मोदी और आरएसएस के ख़िलाफ़.

नया चेहरा

ये बात सही है कि जब से वो विदेश में 'विराम' या 'चिंतन' करके लौटे हैं हम राहुल गांधी का एक नया चेहरा देख रहे हैं.

उनकी वापसी के बाद दिल्ली में किसानों की रैली में उनका नया अवतार पहली बार नज़र आया. उसके बाद लोकसभा में भी उनका आक्रामक रुख़ देखने को मिला.

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने राहुल गांधी के इस नए अवतार को अद्भुत परिवर्तन क़रार दिया. उमर का कहना था कि वो उनके इस परिवर्तन से सीखने की कोशिश करेंगे.

कांग्रेस के राष्ट्रीय छात्र संगठन एनएसयूआई के कार्यक्रम 'दृष्टिकोण 2015' में एक बार फिर उनका नया आक्रामक रुख दिखाई दिया.

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार देश को आरएसएस की एक शाखा में बदल रही है.

द हिन्दू अख़बार के अनुसार राहुल गांधी काफी आक्रामक मूड में थे. राहुल गांधी ने अपने भाषण में कहा कि 'आरएसएस अपनी विचारधारा देश पर थोप रहा है. आरएसएस अनुशासन के लिए जाना जाता है लेकिन ये ढोंग है. अनुशासन की आड़ में ये संस्था वाद-विवाद और संवाद को कुचलती है.'

राहुल ने मोदी सरकार पर इल्ज़ाम लगाया कि उनके राज में मुद्दों पर आम चर्चा नहीं होती, व्यक्तित्व को दबाया जा रहा है.

भूमिका

राहुल गांधी का मोदी सरकार और आरएएस के ख़िलाफ़ ये आक्रमण क्यों?

एक ऐसा नेता जो यूपीए सरकार के दौरान खामोश रहा, जिसका वजूद सोशल मीडिया पर नहीं है और जिसने पिछले साल एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में अपने ख़राब प्रदर्शन से अपने प्रशंसकों को मायूस किया, अब इतना आक्रामक रुख़ क्यों अपनाए हुए है?

आरएसएस विचारक और बीजेपी के महासचिव राम माधव के अनुसार राहुल गांधी की चार पीढ़ियों के विरोध के बावजूद आरएसएस आगे बढ़ रहा है.

उन्होंने ट्वीट करके कहा, "परदादा ने कोशिश की. दादी ने कोशिश की. पिता ने भी. चार पीढ़ियों की नफरत के बावजूद आरएएस फला फूला. मगर कांग्रेस?"

बीजेपी के प्रवक्ता नलिन कोहली के अनुसार राहुल गांधी का मोदी सरकार पर हमला सियासत में योग्य बने रहने की एक कोशिश है.

हक़ीक़त ये है कि राहुल गांधी की ये सियासत में एक तरह से दूसरी पारी है. पहली पारी में वो ज़बरदस्त लुढ़के.

पिछले साल उनकी निगरानी में पार्टी की चुनाव में सबसे बड़ी हार हुई. उनकी पार्टी और खुद उनका सियासी वजूद खतरे में पड़ गया. उनका 56 दिनों का 'वनवास' उनके लिए फायदेमंद साबित हो रहा है.

शायद उन्होंने चिंतन किया होगा कि अब उनका क्या होगा? अब कांग्रेस का क्या होगा? उनकी देश में भूमिका क्या होगी?

कामयाब रुख

चिंतन कहें या आत्मा की खोज, उनकी सोच अब रंग ला रही है. अप्रैल में किसान रैली में नया रुख़ कामयाब रहा. अच्छी प्रतिक्रियाएं आईं.

राहुल गांधी की दूसरी पारी अब तक सफल रही है जिसका एक कारण खुद मोदी सरकार है.

बीजेपी को दिल्ली चुनाव में एक ज़बरदस्त झटका लगा जिससे नरेंद्र मोदी की अपराजेयता वाली छवि को झटका लगा.

दूसरी तरफ मोदी सरकार ने अपने आलोचकों को सरकार की आलोचना के मौके दिए.

उनके ख़िलाफ़ 'विरोधी' आवाज़ों को कुचलने की कोशिश का इल्ज़ाम हो या फिर अर्थव्यवस्था में कोई ख़ास वृद्धि न होने का आरोप हो या फिर अपने चुनावी वादों को एक साल में पूरा न करने के इल्ज़ाम.

मोदी सरकार को घेरने के लिए विपक्ष के पास अब काफ़ी मौके और मुद्दे हैं. राहुल गांधी इसका फायदा उठा रहे हैं.

ऑस्ट्रेलिया में अदानी का विरोध http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2015/05/150530_adani_faces_opposition_in_australia_pm.shtml

Shakun Trivedi : 'THE WAKE' MAGAZINE

Shakun Trivedi : 'THE WAKE' MAGAZINE

Shakun Trivedi : 'THE WAKE' MAGAZINE

Shakun Trivedi : 'THE WAKE' MAGAZINE

Shakun Trivedi : 'THE WAKE' MAGAZINE

Shakun Trivedi : 'THE WAKE' MAGAZINE
बहादुरशाह ज़फ़र से नेताजी का नाता http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2015/05/150529_colonel_nizamuddin_claim_part_two_sr.shtml

Friday, May 29, 2015

RAVIESKUMAR 30 MAY


नई दिल्‍ली: नमस्कार... मैं रवीश कुमार। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी ट्वीटर पर भिड़ गए हैं। अभी तक ट्वीटर पर नेताओं के बयान के बाद उनके समर्थक या भक्त मोर्चा संभाल लेते थे लेकिन स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी के हैंडल पर जाकर सीधे चुनौती दे दी है। कोई वाया मीडिया नहीं। पहले आफिस ऑफ आरजी के हैंडल से ट्वीट आता है कि...
@OfficeofRG आई आई टी स्टुडेंट ग्रुप को मोदी सरकार की आलोचना के लिए बैन किया गया है। अब और क्या करेंगे।
फिर दूसरा ट्वीट आता है।
@OfficeofRG मुक्त अभिव्यक्ति हमारा अधिकार है। असहमति और बहस को दबाने के किसी भी प्रयास के ख़िलाफ़ हम लड़ेंगे।

इसके बाद स्मृति ईरानी उन्हीं के हैंडल पर पलट कर जवाब देती हैं।
@OfficeofRG कल आपने NSUI से कहा कि जहां आर्डर है वहां डिसॉर्डर कर दें। आज आपके गुंडे मेरे घर तब आए जब मैं काम से बाहर थी।
@OfficeofRG अपने लोगों से कहिये कि अमेठी में ऐसी कोशिश हुई लेकिन वे मुझे डरा नहीं पाए। वे अब भी नहीं डरा पाएंगे।
@OfficeofRG मुझे समय और जगह बताइये मैं शिक्षा से लेकर गर्वनेंस पर बहस के लिए तैयार हूं।
@OfficeofRG अगली बार से अपनी लड़ाई खुद लड़िये। NSU1 के पीछे छिपकर नहीं। वैसे मैं जल्दी ही अमेठी लौट रही हूं।

वैसे दिल्ली चुनाव के वक्त किरण बेदी ने बहस करने की चुनौती को स्वीकार नहीं किया था जब केजरीवाल ने चुनौती दी थी। किसी के घर जाकर प्रदर्शन करने का रिकॉर्ड निकालेंगे तो आपको हर पार्टी का नाम मिलेगा। क्या एक केंद्रीय मंत्री को इस तरह से चुनौती दी जानी चाहिए थी। क्या अब बीजेपी के कार्यकर्ता प्रदर्शन करेंगे तो ये चुनौती दी जाएगी कि नेता को बोलो सामने आए लेकिन क्या कीजिएगा ट्वीटर की भाषा पर्सनल हो जाती है। जिस तरह से स्मृति ईरानी ने राहुल को खुलकर सामने आने की चुनौती दी है, ऐसा होने लगा तो पार्टियों के नेता अब अखाड़े में ही मिला करेंगे और उनके समर्थक या संगठनों के कार्यकर्ता टिकट कटा कर मुकाबले का आनंद लेंगे। राहुल गांधी ने स्मृति ईरानी को जवाब नहीं दिया है, हो सकता है सदमा लग गया हो।

Pass ward

[30/05 10:38 am] NAZA MAHSANA. VIP: harshadbrahmbhatt@hotmail.com, pass : hdb9925008484 [30/05 10:38 am] NAZA MAHSANA. VIP: harshad.brahmbhatt@gmail.com, hdb9925008484

Thursday, May 28, 2015

Ravieskumar 29 may


नई दिल्‍ली: नमस्कार मैं रवीश कुमार, दुनिया भर के लोग मौसम की तलाश तब करते हैं जब वह सौम्य हो, शांत हो, सुहाना हो लेकिन मीडिया मौसम की बात तभी करता है जब उसमें उग्रता आ जाए। अति आ जाए। इस उग्रता की बात करनी चाहिए लेकिन सवाल है कि किस तरह से की जा रही है। इस तरह से तो न ही की जाए कि एसी वाले नान एसी वालों को हैरानी से देखने लगे कि क्या हो रहा है। इससे भी बात न बने तो सुर्खियों में महीने के हिसाब से तुकबंदी कर लें।

जनवरी और जून है तो जानलेवा सर्दी और जानलेवा गर्मी। मार्च और मई है तो बारिश होने पर मनहूस मार्च और गर्मी होने पर मौत वाली मई। मेरा बस चले तो एकाध बार फालतू फरवरी और अड़ियल अगस्त भी लिख दूं। सरकारों और एनजीओ का रवैया भी हमारे ही जैसा है। सर्दी की सनसनी हेडलाइन देखकर सरकारें स्कूल बंद कर देती है। कोहरे का कहर देखकर अलाव जलवाने लगती है और कंबल बंटवाने लगती है। गर्मी में ऐसा कुछ नहीं होता। पर इतना दिमाग़ लगाने की ज़रूरत नहीं है।

जैसे गमछा लपेटे लोगों की तस्वीर इस महीने में खूब दिखेगी आपको। यही लोग सर्दी के दिनों में अलाव के पास नज़र आते हैं। इस ज़ेबरा क्रांसिग की हालत तो अलजेबरा जैसी हो गई है। गर्मी से अलकतरा का रायता हुआ तो ज़ेबरा की पंक्तियां एक दूसरे से बिछड़ गईं। दिल्ली के अखबारों या अब तो कहीं के भी अखबार देख लीजिए, भींगते या जलते हुए स्कूटी पर लड़कियों की ही तस्वीर छपती है जैसे इन्हें सीबीएसई की तरह मौसम में भी 99 परसेंट आ गया हो। संसद या नार्थ ब्लॉक से कोई फोटोग्राफर लौटता ही रहता है वही इंडिया गेट के आस पास की तस्वीरें ले आता है। जैसे दिल्ली में करोलबाग या तैमूरनगर में लड़कियों को गर्मी या सर्दी से कोई परेशानी ही नहीं होती। फोटोग्राफर को इंडिया गेट में भींगते या गलते हुए कोई लड़का भी तो दिख सकता है, पर नहीं, क्या पता परेशानियां भी ग्लैमरस होती होंगी। अंग्रेजी में इस प्रवृत्ति को मीडिया का क्लिशे कहते हैं। इस क्लिशे का नमूना है गर्मी की स्टोरी में पानी पीने का शाट। सारी स्टोरी में लोग ऐसे ही क्यों पानी पीते हैं। थिंक अबाउट अ लिटल बिट। मुई मई जैसी हेडलाइन पढ़िये और ड्राईंग रूम में मुस्कराइये।

मौसम की चर्चा बिल्कुल होनी चाहिए लेकिन ऐसे नहीं जैसे कुछ लोग थर्मामीटर में 98 डिग्री सेल्सियस देखते ही 102 डिग्री सेल्सियस की तरह कांपने लगते हैं। हम आपको इतना भी आतंकित न करें कि आप घर से निकलना ही बंद कर दें। यह भी हो सकता है कि हम और आप पहले से कहीं ज़्यादा अपने मौसमों को लेकर अनजान होते जा रहे हैं। अब सोचिये कि 29 मई 1944 की रात मैं प्राइम टाइम कर रहा होता और पता चलता कि दिल्ली का तापमान 47.2 डिग्री है तो 2015 तक नहीं टूटने वाला है तो क्या कर रहा होता। गांधी जी और नेहरू जी को ही पुकारने लगता। इतनी गर्मी में भारत की आज़ादी की लड़ाई कैसे चलेगी। इतनी गर्मी के बाद भी अंग्रेज़ इंडिया से जाते क्यों नहीं है। हमारी सहयोगी दिव्या ने पिछले दिल्ली में पिछले पांच साल का 15 से 31 मई का आंकड़ा दिया है। इन आंकड़ों से आपको इस दौरान के अधिकतम तापमान का पता चलेगा।
Year  High  Date
2015  45.5  (25th)
2014  43.7  (30th)
2013  45.7  (24th)
2012  45.0  (31st)
2011  44.1  (18th)
2010  45.4  (18th)

2013 में मई महीने में अधिकतम तापमान 45.7 डिग्री सेल्सियस था इस साल अभी तक 45.5 डिग्री सेल्सियस है जो कि सोमवार को रिकॉर्ड किया गया। यह बताने का मकसद यह नहीं है कि तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में इस दौरान हुई मौतों को कम आंका जाए। चिन्ता की बात तो है ही इस बार ऐसा क्या हो गया कि दोनों राज्यों से 1400 से अधिक लोगों के मारे जाने की ख़बरें आ रही हैं। इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। तेलंगाना और आंध्रप्रदेश की गर्मी इस बार दिल्ली और आस पास के इलाकों से कहीं ज्यादा है।
आंध्र और तेलंगाना के अस्पतालों में लू की चपेट में आए मरीज़ों की संख्या बढ़ती जा रही है। हैदराबाद में बच्चों के नीलोफ़र अस्तपाल में एक हफ्ते में 10 से 15 प्रतिशत मरीज़ों की संख्या बढ़ गई है। आंध्र प्रदेश में 1000 से ज्यादा लोग मरे हैं और तेलंगाना मं 440 से ज्यादा। कहा जा रहा है कि अचानक तापमान बढ़ गया। मार्च और अप्रैल में बारिश के कारण तापमान कम रहा इस वजह से शरीर को मौसम के मुताबिक ढलने का वक्त नहीं मिला। पर क्या यही वैज्ञानिक कारण है। जिन लोगों को इस गर्मी में भी काम करना है वो सरकार की इस सलाह से तो चल नहीं सकते कि 9 से 4 के बीच घर से न निकलें। दिल्ली की तुलना में निश्चित रूप से तेलंगाना और आंध्र के इलाकों में तापमान ज्यादा रिकॉर्ड किया जा रहा है। तेलंगाना के खम्मम में 47.6 डिग्री सेल्सियस रहा जो 1947 के बाद सबसे अधिक है। नलगोंडा में 22 मई को तापमान 47 डिग्री यहां 1988 के 46.8 रिकॉर्ड किया गया था। मौसम विभाग का कहना है कि तापमान बहुत ज़्यादा अधिक नहीं है। इतना तापमान होता है लेकिन यह 4-5 दिनों तक रह गया। जल्दी ही यह 44-45 पर आ जाएगा। तेलंगाना के मुख्यमंत्री कहते हैं कि सरकार जितना कर सकती है वो कर रही है लेकिन और क्या करे जिससे लोगों की जान बच जाए यह समझ नहीं आ रहा है। क्योंकि जो भी करना है वो तुरंत करना होगा।

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी कलेक्टरों को निर्देश दिया है कि वे इस वक्त क्या एहतियात बरतें इस बात का खूब प्रचार करें। उनका कहना है कि इस बार तापमान सामान्य से 5-6 डिग्री ज्यादा है और अगले एक हफ्ते से 10 दिनों तक यही रहेगा। मौसम विभाग के निदेशक कहते हैं कि चार पांच दिन रहेगा मुख्यमंत्री कहतें कि 7 से 10 दिन रहेगा। पिछले साल आंध्र प्रदेश में 447 लोगों की मौत हुई थी। लू से मरने वालों के परिवार को एक लाख रुपये की मदद राशि दी जाएगी।
सेंटर फार साइंस एंड एनवायरमेंट ने कहा है कि मौसम में आ रहे बदलावों के कारण भी तापमान काफी रहने लगा है। जलवायु में परिवर्तन के कारण 2014 को सबसे अधिक गरम साल के रूप में दर्ज किया गया था। भारत में 10 सबसे गरम वर्षों में से 8, 2001 से 2010 के बीच के हैं। दुनिया भर में बढ़ते तापमान के कारण और भी लू चलेगी। रात के समय का तापमान भी बढ़ता जा रहा है। अहमदाबाद और दिल्ली में रात के वक्त का तापमान 39 और 36 डिग्री रिकार्ड किया गया है। हर साल लू की संख्या 5 से बढ़कर 30 से 40 होने वाली है। जब तापमान सामान्य से पांच डिग्री या उससे ज्यादा हो जाता है तो उसे लू का चलना कहते हैं। अल्ट्रा वायलेट किरणों की मात्रा भी ज्यादा होती जा रही है जिससे स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है। ये सारी जानकारी मैंने फर्स्टपोस्ट से ली है। उड़ीसा के 3 शहरों में भी गुरुवार को 45 डिग्री से ज्यादा तापमान रिकार्ड किया गा है। भवानी पटना का तापमान रहा 46.5 डिग्री सेल्सियस।

जलवायु परिवर्तन, एयरकंडिशन का अंधाधुंध इस्तमाल से लेकर लू से कैसे बचें इस पर बात करेंगे। क्या जानकारी की कमी से मौत हो रही है या लू लगने पर अस्पतालों की नाकामी से। क्या लू लगने पर मौत ही होती है ये सब कुछ सवाल हैं जिन पर बात करेंगे बहस नहीं।

29 may good morning

Always be nice to people on the way up; because you'll meet the same people on the way down..... GM

Take a look at @FocusShowbiz's Tweet: https://twitter.com/FocusShowbiz/status/603851117844275201?s=09

28 may

Good practice

Wednesday, May 27, 2015

RAVIESKUMAR GRAT .28 MAY


नमस्कार मैं रवीश कुमार, मांस खाना न तो धार्मिक रूप से अपराध है न सांस्कृतिक रूप से फिर भी कुछ मांसाहारियों की एक ख़ूबी होती है। वे तीज त्योहार के टाइम एक दिन से लेकर नौ दिनों के लिए शाकाहारी हो जाते हैं। हमारे बिहार में छठ पूजा समाप्त नहीं हुई कि लोग घाट से ही मछरी खरीदने दौड़ पड़ते हैं। बंगाल में दुर्गापूजा के वक्त अंजली के बाद ही मुड़ी घंटो और कौशा मांशो खाने लगते हैं तो उत्तर भारत में नवरात्र के समय व्रत करने वाले मांस को हाथ नहीं लगाते। ऐसे कई मंदिर हैं जहां भैंसों की बली दी जाती है। बीफ का मतलब सिर्फ गाय का मांस नहीं होता। भैंस बैल और बछड़े का भी होता है। बीफ खाने के विवाद को हमें मांसाहार बनामा शाकाहार वालों से अलग देखना चाहिए।

केंद्रीय मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी ने आजतक के मंथन कार्यक्रम में राजदीप सरदेसाई से कह दिया कि जो ये आस्था और विश्वास का मुद्दा है। गाय को भारत में पवित्र माना जाता है तो हम इसे मारने की अनुमति नहीं दे सकते। जो इसके बिना नहीं रह सकते उन्हें पाकिस्तान या अरब देशों में चले जाना चाहिए। नक़वी साहब से पहले गिरिराज सिंह ने भी मोदी विरोधियों को पाकिस्तान भेजने की बात कही थी। बेचारा पाकिस्तान भी नक़वी और गिरिराज जी के कहने पर कितने लोगों को एडजस्ट करेगा। कहीं कश्मीर से बड़ा मसला बीफ़ न हो जाए।

बुधवार सुबह इंडियन एक्सप्रेस में जब केंद्रीय गृह राज्य मंत्री रिजीजू साहब का बयान पढ़ा तो पता लगा कि मोदी सरकार में कोई तो है जो बीफ खाता है और खाने को लेकर शर्मिंदा नहीं है। मिज़ोरम की राजधानी आइज़ोल में उन्होंने कहा कि मैं अरुणाचल प्रदेश से हूं और बीफ खाता हूं। क्या कोई मुझे रोक लेगा। इसलिए किसी की आदत को लेकर इतना टची यानी छुईमुई होने की ज़रूरत नहीं है। अगर कोई मिज़ो ईसाई कहे कि यह यीशू की भूमि है तो पंजाब या हरियाणा में किसी को क्यों प्रोब्लम होना चाहिए। महाराष्ट्र गुजरात मध्यप्रदेश में हिन्दू बहुसंख्यक हैं और वे हिन्दू आस्था के हिसाब से कानून बनाना चाहते हैं। लेकिन जहां हम बहुसंख्यक हैं तो हमें अपने हिसाब से करने दो। काश कि किरण साहब अपनी बात पर अड़े रह जाते मगर आज सुबह उन्होंने स्पष्टीकरण भेज दिया कि मेरे बयान को मिसकोट किया गया है। जब सिविल सोसायटी और प्रेस ने मुझसे पूछा कि क्या बीफ खाने पर क्या उन्हें पाकिस्तान जाना होगा। मैंने कहा कि भारत एक सेकुलर देश है और खान पान की आदतों को रोका नहीं जा सकता है लेकिन हिन्दू बहुल राज्यों में हिन्दू आस्था और भावना का सम्मान किया ही जाना चाहिए। भारत में नया फैशन चल गया है। जो भी हिन्दू के ख़िलाफ बोलता है सेकुलर हो जाता है। प्रधानमंत्री का विजन एक अरब 20 करोड़ लोगों के लिए है। हमें सांप्रदायिक आधार पर न बांटा जाए।

वैसे ग़ौर से देखेंगे तो I was misquoted के अलावा कुछ भी मिसकोटेड नहीं है। लेकिन इसमें रिजीजू साहब बीफ खाने का समर्थन तो कर ही रहे हैं। शायद इसी को और क्लियर करने के लिए शाम को गुलाहाटी से बयान देते हैं कि मैंने ऐसा कोई बयान नहीं दिया है। मिज़ोरम के लोग सिविल सोसायटी और प्रेस ने मुझसे पूछा कि क्या उन्हें बीफ खाने पर पाकिस्तान जाना होगा। तो मैंने कहा कि हम संविधान से शासित होते हैं जिसमें हमारी आस्था है। मैंने यह भी कहा कि मेरे परिवार में, मेरी पत्नी और मेरे बच्चे कोई बीफ नहीं खाता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मुझ पर थोपा जाएगा। इस पर कोई विवाद नहीं होना चाहिए।
इस सफाई में भी एक झोल है। वे अब कह रहे हैं कि थोपा नहीं जाना चाहिए। क्या वे एक्सप्रेस वाली बात ही कह रहे हैं। मिज़ोरम में रिजीजू साहब ने प्रेस कांफ्रेंस मे जो बोला है उसकी आडियो रिकार्डिंग मौजूद है मगर मेरे पास नहीं है। रिजीजू ने एक्सप्रेस को चुनौती नहीं दी है। क्या पता एक्सप्रेस ही रिकार्डिंग सामने रख दे। दूसरी सफाई में उनका इस बात पर ज़ोर है कि मेरे परिवार का कोई बीफ नहीं खाता है। उनसे यह पूछा जा सकता था कि क्या वे महाराष्ट्र हरियाणा की तरह पूर्वोत्तर के राज्यों में भी गौ मांस पर प्रतिबंध की वकालत करते हैं।

पूर्वोत्तर के सातों राज्य, बंगाल और केरल में बीफ खाने या बेचने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। बिहार, यूपी, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक, दिल्ली सहित जम्मू कश्मीर में भी गौ हत्या पर प्रतिबंध है।
मुंबई में 1956 से गाय का मांस नहीं बिक रहा है। विनोबा भावे के कहने पर कुरैश समाज ने बेचना बंद कर दिया था। महाराष्ट्र में भी 1976 से प्रतिबंध है लेकिन इसमें 1995 के संशोधन को इस साल मंज़ूरी मिली है। नई सरकार ने गौ वंश हत्या बंदी कानून के ज़रिये बैल और बछड़े के मांस पर प्रतिबंध लगा दिया है। महाराष्ट्र में 80 प्रतिशत बीफ बैल और बछड़े का होता है। गाय का मांस तो बिकता ही नहीं है। अब कहीं और से भी लाकर गाय बैल भैंस के मांस को खाना या रखना अब जुर्म हो गया है।

भारत दुनिया में ब्राज़ील के बाद भैंसे के मीट का दूसरा बड़ा निर्यातक देश हैं। महाराष्ट्र, पंजाब उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा निर्यात होता है। भैंस को लेकर कोई राजनीति नहीं है जबकि आप हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश ही चले जाएं तो पता चलेगा कि लोग अपनी भैंस से कितना प्यार करते हैं लेकिन वे भैंसे के निर्यात पर आंदोलन भी नहीं करते। कांचा इलैया ने बफलो नेशनलिज्म किताब में सवाल भी उठाया है कि गाय पवित्र है तो भैंस क्यों नहीं है। गाय का काटना जुर्म है तो भैंस की बली क्यों जायज़ है।
महाराष्ट्र में प्रतिबंध के बाद किसान नाराज़ बताए जा रहे हैं। गो वंश हत्या बंदी कानून के बाद बीमार बैल और बछड़ों को पालना मुश्किल हो गया है। कई बार किसान इन्हें बेचकर अपना कर्ज कम कर लेते थे। अब इन्हें सूखे में भी बीमार बैल की सेवा करनी पड़ रही है। गौ हत्या और गौ मांस खाने को लेकर हमारे देश में राजनीतिक टकराव से लेकर दंगे तक हुए हैं। लाउडस्पीकर और गौ मांस को लेकर कई दंगे हो चुके हैं। दलित कार्यकर्ता और ईसाई कहते रहे हैं कि वे बीफ खाते रहे हैं। यह उनका भोजन है। हिन्दू समाज की ऊंची जातियों में भी कई लोग बीफ खाते रहे हैं। आपको बाबर से लेकर अकबर तक का फरमान मिलेगा कि हिन्दुओं की भावना का ध्यान में रखते हुए गौ मांस नहीं खाना चाहिए। गांधी का भी बयान मिलेगा। डॉक्टर अंबेडकर ने भी विस्तार से इस पर लिखा है कि ऐसा नहीं है कि ब्राह्मणों और हिन्दुओं ने कभी गौ मांस खाया ही नहीं। इसी पर इतिहासकार डीएन झा की किताब द होली काउ भी है। काफिला डाट ओर आर जी पर सुभाष गाताडे ने लिखा है कि सावरकर ने कहा था कि गाय न तो मां है न भगवान है पर एक उपयोगी जानवार है। दूध क्रांति के जनक वी कूरियन ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि हमारे डेरी बिजनेस में ज़रूरी है कि जो अस्वस्थ गायें हैं उन्हें हटाते रहे हैं। मायावती ने महाराष्ट्र में गौ वंश हत्या कानून का समर्थन किया है। पंजाब सरकार ने इसी 20 मई को एक फैसला किया है कि राज्य के 472 गौशालाओं को मुफ्त बिजली दी जाएगी।

देश की छह बड़े मांस निर्यातक कंपनियों में चार के मालिक हिन्दू हैं। बीमार गायों और चौराहों पर पोलिथीन खाने के लिए मजबूर गायों के लिए तो कुछ नहीं है। बूढ़ी और बीमार गायों का रखरखाव कौन करेगा। भारतीय राजनीति के इस सवाल पर ऐसा कुछ बचा नहीं है जो कहा नहीं गया हो। रोज़गार से लेकर आहार तक पर चर्चा हो चुकी है। रिजीजू साहब हो सकता है एक बार और सफाई दें लेकिन क्या हम इसे लोकतांत्रिक अधिकारों के चश्में से देख सकते हैं। नहीं खो वाला वैसे ही नहीं खाता है। जो खाता है उससे कानून से क्यों वंचित किया जाए। प्राइम टाइम